BA Yr 2 FT: Lecture 4 – “क्षुद्रताएँ” पर प्रस्तुतीकरण
October 3, 2011 14 Comments
Monday 03 Oct 2011, BA FT Yr 2, 12 pm – 1.30 pm
सभी को नमस्कार.
आज की कक्षा मूलत: “क्षुद्रताएँ” के प्रस्तुतीकरण पर आधारित रही.
मुझे उन लोगों तक यह संदेश पहुँचाना है जिन्होंने कहानी नहीं पढ़ी और जिन्होंने तैयारी नहीं की. कृपया अगली बार से सावधान रहें. साथ साथ आप अपने MIS भी देखें, इस तर्ह से आपको पता लग जाएगा कि अगली कक्षा में क्या करने वाले है.
शेष सभी से कहानी के विषय में आज प्रश्न किए गए. मैं यह अपेक्षा रखता हूँ कि भविष्य में आप कुछ आलोचनात्मक टिप्पणियाँ प्रस्तुत करें जब भी आप से प्रश्न किए जाएँ और इसके लिए पूर्व तैयारी की आवश्यकता है.
आज के लिए, मैं Manita, Rishika, Trishila, Chitralekha aur Parineeta को पूरी कक्षा की तरफ से धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने काफी तैयारी के साथ अपना पॉवर्पोईंट प्रस्तुतीकरण रखा. कुछ टिप्पणियाँ इस प्रकार हैं: –
- तैयारी की दृष्टि से आप लोगों ने काफी परिश्रम किय और यह आपके प्रतुतीकरण में देखने को मिला.
- कार्यभार का विभाजन बखूरबी किया गया और सभी को अपने हिस्से का काम पता था.
- कुछ साधारण व्याकरणिक अशुद्धियों के निवारण पर ध्यान देना होगा (जैसे – अप्ने मान्यता, हिंदु, मोरिशस, ऊँच जाति, आप्रवासियाँ, वहाँ vs वह, उनका विचारधारा, शोषन, उन्होंने .. निभाते हुए.. आदि)
- सटीक उदाहरणों को न भूलें.. (भाषा, मुहावरे, शैली आदि के संदर्भ में)
- अपने श्रोताओं के साथ संपर्क की स्थिति पर सोचें, eye contact आदि.
- पृष्ठों के केवल पढ़ने से मुक्त होइए.
- समय-सीमा का ध्यान रहें.
- कक्षा के साथ सवाल-जवाब में सभी प्रतिभागियों को भाग लेना चाहिए, न कि एक ही उत्तर दें.
- कहानी की आलोचना मॉरीशसीय संदर्भ में भी की जाने चाहिए थी (स्थानीय संदर्भ में इसकी सार्थकता बताना चाहिए था)
- लेखक जय जीऊत का व्यक्तिगत परिचय दिया गया तथा कहानी की मूल समस्या पर प्रकाश आरंभ में ही डाला गया.
- पात्रों की चरित्रगत विशेषताएँ तो रखी गईं परंतु मनोवैज्ञानिकता के आधार पर गंभीर विश्लेषण आवशयक था.
- कहानी का विश्लेषण सराहनीय रहा.
- साहित्य, समाज आदि के साथ कहानी की आलोचना भी की गई, जो अच्छा रहा परंतु इसमें भी तारतम्य लाने की आवश्यकता है.
- शैली, भाषा, मुहावरे आदि पर कुछ अधिक गंभीरता व उदाहरणों के साथ विवेचना की जा सकती थी.
- कहानी की समस्याओं का सही विश्लेषण हो पाया – जाति प्रथा, सामाजिक कुप्रवृत्ति आदि.
- अंतर्राष्ट्रीय उदाहरण भी सराहनीय रहे.
- PowerPoint presentation + 2 clips (एक, श्वेत-श्वेत की समस्या पर + दूसरा, भारतीय संदर्भ में अस्पृश्यता – untouchables – की स्थिति को लेकर कुछ तथ्यात्मक संदर्भ) बहुत ही अच्छे रहे. चित्रों का भी सही संयोजन हो पाया.
पहले तो मैं परिनीता को धन्यवाद देना चाहूँगी क्योंकि उसने प्रस्तुत कहानी की मूल सम्वेदना पर हमारा ध्यान आकृष्ट किया और यह भी संदेश दिया कि निम्न जात पर कितना शोषण किया जाता था।जाति समस्या एक ज्वलंत समस्या है।वर्षों से यह समस्या देश-विदेश में फैली हुई है।
आज अगर देखा जाए तो हमें पता चलता है कि यह समस्या पूरी तरह से मिटी नहीं हैन.आज भी लोग इसी परंपरा को निभाते आ रहे हैं जो कि गलत है।शादी-विवाह के संदर्भ में अगर देखा जाए,तो यह दिखता है कि कैसे आज भी समाज इस प्रथा को मानते आ रहे हैं।अगर कोई लड़का ऊच्च जात का है तो उसे पहले ही बता दिया जाता है कि उसे ऊच्च वर्ग की लड़की से ही शादी करनी चाहिए और यही बात लड़कियों पर भी लागु होती है।
अगर हम आवाज़ उठाने की कोशिश करते हैं तो माता-पिता चुप कर देते हैं।ऐसे में हमें ये सब विवश होकर अपनाना पड़ता है।आज केहने को तो हम एक आधुनिक विश्व में जीवन यापन कर रहे हैं लेकिन लोगों की मनसिकता अभी-भी पहले ज़माने की सोच की तरह है।
मैं तो बस आशा करती हूँ कि लोगों की सोच बदले और और हमार देश इन सब मनसिकताओं से दूर हो।
सर्वप्रथम मैं परिणीता और उसके साथियों को बधाई देती हूँ च्योंकि उन का प्रस्तुतीकरण अत्यंत ही सुचनादायक रहा और तथ्यों से भरपूर्ण था.उन्होंने यथाशक्ति शुद्त्रताएं कहानी की समीक्षा की..इसके अतिरिक उनके प्रस्तुतीकरण में जिम क्रो लव्स( Jim Crow laws) की बात छेरी गयी. यह उस समय की बात हैं जब कानून ने गोरों तथा कालों के बिच की खाई को बढ़ाया था. होमर प्लेस्सेय नामक काले वर्ग का आदमी गोरों की रेलगारी में बैठ गया था. जब उसे इस ‘जुर्म’के लिए दोषी माना गया तब उसने न्यायालय में अपने हक़ के लिए दरवाज़ा खटखटाया. परन्तु न्याय स्वयं उसके साथ अन्याय कर बैठी. अदालत में यह निश्चय हुआ किया आगे में ताकि ऐसी समस्या उत्पन्न न हो, भलाई इसी में हैं की गोरे और काले लोग अलग अलग रहे. कोर्ट ने “Separate but equal” की बात छेरी.कहने का तात्पर्य यह हैं कि जब कानून ही निम्न वर्गीय लोगों को निम्न होने का भाव दिलाता हैं तो हम इंसान क्या चीज़ हैं?
इस कहानी में हमारे समक्ष एक ज्वलंत समस्या उभरती हैं- जात पात की समस्या. देखा जाए तो हमारे समाज में आज भी यह समस्या उतनी ही तीव्र हैं हालाकि हम सब दिखाने के लिए भाई-भाई हैं. जब वर्ण की बात उठती हैं तब सारा भाईचारा लुप्त हो जाता हैं , यह हैं विडम्बना हमारे तथाकथित स्वर्ग के समान देश का. राजनीतिक स्तर पर यह द्रष्टव्य हैं. जो नेता देश व जनता के हित हेतु संलग्न होते हैं, वे स्वयं भेद भाव कर, इस खाई को बढ़ा रहे हैं.
हम अपने को “मोदेर्ण” कहते हैं, आधुनिक युग के “मोदेर्ण” नागरिक. हम मोदेर्ण हैं परन्तु मात्र खाने पिने, रहन सहन की दृष्टि से. जहाँ तक मानसिकता की बात हैं, मैं सब की नहीं ,वरन कुछ ऐसे लोगों की बात कर रही हूँ जो आज भी उस रुढ़िवाद से जुरे हुए हैं. जब तक यह मानसिकता बनी रहेगी तब तक आने वाले पीढियां दुःख सहती रहेगी. दुःख इसलिए क्योंकि जब शादी का समय आता हैं तब माता पिता अपने जात के सुयोग्य लड़का -लरकी को ही चुनते हैं शायद वे एक और से सही हैं क्योंकि दुसरे जात के लोग अन्य जातियों को कुदृष्टि से देखते हैं. पर क्या अपने जात में शादी करने से कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती??
धन्यवाद …रत्ना
मेरे दोस्तो के प्रस्तुतिकरण द्वारा यह सिध होता है कि उन्होने काफ़ी हद तक खोज कार्य किए. मै हमेशा से सोचती थी कि जाति मे भेद भाव रखना केवल भारत जैसे देशो मे है..मै इस विषय से बिलकुल अपरिचित थी कि हमारे देश में भी जाति को लेकर इस प्रकार की बातें चलती है. ऐसा प्रतीत होता है कि यह मानसिकता जैसे एक परंपरा बन गयी है,,सालों से जनता के दिमाग में यह मानसिकता बिठाई गयी है और मुझे नहीं लगता कि इसको हटाना इतना आसान है. मनुष्य कितना ही प्रगति करले परन्तु यह भाव फिर भी रहेगी हलाकि कम हो सकती है.दुनिया के किसी भी कोने में देखे, छोटे और बड़े लोग में अवश्य फर्क पाए जाते है.
कबीर ने कहा है….’जाति-पाति पूछे नहीं कोई,हरि को भेज सो हरि का होई,एक ही रक्त सो बने है,कोहा शुद्र कोहा ब्रह्मण’…अर्थात एक ही तरह से मनुष्य की रचना हुई है जैसे आग,पानी,मिट्टि और शुद्र भी इसी तत्व से बने है,तो अलग कैसे है?
our last lecture was interesting as we have learn the art of translating a text or paragraph. Through different definition of translation we have deduce of how can we translate somefing without losing its originality.
नमस्ते गुरुजी…….
मंगलवार की कक्षा सच्च में रुचिमय थी…क्षुद्रताएँ कहानी की प्रस्तुतीकरण के माध्यम से हम लोग कहानी की मूल समस्या से परिचित हुए..
हमारी सहेलियों ने बहुत ही गहराई से इस कहानी का खोज-कार्य किया हैं…….क्षुद्रताएँ कहानी के ज़रिये लोगों की मानसिकताएँ दर्शाई गयी हैं….अर्थात भाव और जाति का उल्लेख किय गया है….क्षुद्र होना कोई गलत बात तो नहीं; पर क्यों कुछ लोग क्षुद्रों को ‘अछूत’ होने का दर्जा देते हैं??…
कहने को तो सभी कहते हैं कि हम को एकता से रहना चाहिए, किन्तु जब लोग जातीय भेद-भाव के जाल में फँस जाते हैं तब इससे बाहर निकलना मुश्किल हो जाती हैं…इस युग में भी ऊच्च और नीच वर्ग के जन में टकराव है….अब कहाँ गई यह एकता और सभ्यता??….कई लोग तो विवश्ता के कारण चुप-चाप सब कुछ सह लेते हैं….परन्तु यह कब तक चलेगा???…
मुझे लगता है कि जब तक ये लोग अपनी मानसिकता नहीं बदलते, तब तक वे पीछे ही रहेंगे….
धन्यवाद….
तूशी….
मे अपने दोस्तो को बहुत धन्यवाद करती हु.उन्होने इस कहानी को पुरी बारिकी के साथ तैयार किया हे.उन्होने एक सामाजिक यथार्थ को हमारे सामने प्रस्तुत किया हे जो समाज को पतन की और ले जाता हे.इस कहानी द्वारा मनुश्य की कुत्सित मानसिकता का आभास होता हे.मनुश्य को कर्म जानना चाहिये ना की धर्म से.
क्षुद्रताएँ शीर्षक कहानी द्वारा ह्म देख पाते हैं कि कैसे भेद भाव की समस्या सामने आती है।गांधी जी जैसे महान पुरुष ने स्वयं कहा कि वे सभी को हरिजन मानते हैं कोई बरा या छॊटा नहीँ है।जब भगवान खुद भेद भाव नहीँ करते तो साधारण पुरुष को क्या हक बनता है कि किसी को तुच्छ समझे या दुख दे।लेकिन अफ़्सोस की बात है कि अभी तक लोगों की मानसिकता बदले नहीँ है।गरीबों के अस्तित्व को अनदेखा किया गया है।इस कहानी में मानवीय मूल्यों पर सत्य एवं न्याय का प्रतिपादन किया गया है।
सर्वप्रथम मैं परिणीता और उसकी साथियों को अपने प्रस्तुतीकरण हेतु बधाई कहती हूँ |
क्षुद्रताएँ कहानी में गंभीरता तथा सजीवता है | वह निम्न जाती पर हो रहे अन्याय को दर्शाती है| समाज के दुष्ट मानसिकता को पाठकों के सामने लाती है| समाज निम्न वर्ग के लोंगों का मात्र तिरस्कार ही नहीं करते है बल्कि उन का विश्वास भी नहीं करते| उनके लिए ये लोग समाज में एक बोझ एवं कलंक हैं| परन्तु वे नहीं जानते की वे शुद्र होते हुए भी अपने विचारों के कारण वे स्वयं ही शुद्र है|
कहानीकार ने कहानी द्वारा लोगों को यह सन्देश पहुँचाया है की अन्य लोगों को रूप, रंग तथा जात – पात से परखना छोर दें क्यूंकि ईश्वर के लिए सब बराबर है| व्यक्ति अपने कर्म से जाना जाता है नाही अपने धर्म से|
धन्यवाद
कविता
देखने योग्य बात यह है कि मनुष्य का अधिकार है कि वह अपने अस्तित्व को एक सतीक रुप,महत्व एवं अपने मन की शांति के लिए समाज के कुरीतियों के समक्ष सिर न झुकाये. “क्षुद्रताएँ ” में ज्वलंत समस्य साफ़ देखाई देता है…. हाँ दोस्तों नीच होना क्य हमारे अस्तित्व को खंडित करता है??????????? यदि भग्वान ने हमें संसार में ज्न्म लेने का सुअवसर दिया तो क्यों हम अन्य लोगों के विचारधारा को क्यों अपने जीवन पर उनका मोहर क्यों लगाने दें??????????????????????????? सभि क खून एक ही है तो हमें यह प्रयास करें कि सत्मार्ग पर चलें एवं कर्म को महत्व दें………… जैसे:
Edwin Arnold
” there is no caste in blood ”
Harper lee
” You never really understand a person until you consider things from this point of view until you climb into his skin and walk around in it.”
दुर्गा पूजा के अवसर पर एक बालक माता दुर्गा को नमन कर रहा था,इसके तुरन्त बाद एक पंडित ने मूर्ति को हल्दी और पानी से धोया यह कह्कर कि यह मूर्ति अपवित्र है.एक पंडित हो कर भी वह नहीं जानता कि जात पात करना पाप है इन्हीं लोगों के कारण से आज समाज विघटित हो रहा है.महात्मा गाँधी,स्वामी दयानन्द,स्वामी रामदेव और ओबामा का सप्ना पूरा न हो सका. मायकल जाक्सोन भी एक ज्वलन्त उदाहरण है
परिणीता की बातों को ध्यान में रखते हुए मुझे लगता हैं कि Caste is all in the mind of people..यह मान्यता हमारे दिमाग में हैं कि लोगों के बिच भी उच्च नीच तथा वर्गीकरण हैं.
जब तक इस विचार, इस मान्यता से परे होकर हम न सोचे, जब तक इस समस्या को जर-सहित उखार कर न फेंक दे, तब तक एक स्थिर व विकासशील देश एवं समाज कि कामना करना असंभव हैं.यह एक विवादास्पद विषय हैं
हमारे नेता गण भी उन्ही प्रान्तों में चुनाव के लिए खरे होने जाते हैं जहाँ पर उनके जात के लोगों की मात्रा अधिक हो. इससे उनका जीत निश्चित हैं. अब हाल ही कि बात- हमारे आदरणीय मुनीश्वरलाल चुनी जी का भाषण जब उन्होंने यह स्पष्ट रूप से कहा था कि रामगुलाम “वैश्यों” का मंत्री हैं . क्या उनका तात्पर्य यह था कि प्रधान मंत्री मात्र एक वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं??यदि एक उच्च कोटि के मंत्री का यह विचार धारा हैं तो आम लोगों को हम क्या दोषी ठहरा सकते हैं?
रत्ना ^_^
ना सिर्फ हमारे नेता बल्कि धार्मिक “महापुरुष” भी जातीय भेद भाव में विश्वास रखते हैं. जिन से हम उत्तम होने की आशा रखते हैं, वे ही कभी कभी कुरीतियों को बढ़ावा देते हैं. पर उनका भी दोष नहीं है…यह उनकी मानसिकता है, वे हमेशा से इसी मानसिकता के साथ जीते आये, यही उनके जीने का ढंग है. नयी पीढ़ी को अगर जातीय भेद भाव गलत लगती है तो हमें इसका विरोध करना चाहिए. अगर विरोध नहीं कर सकते, कम से कम बढ़ावा नहीं देना चाहिए.
French Revolution के समय से लोग Fraternity, Equality & Liberty की बातें करते हैं पर व्यवहार में नहीं लाते. हमें इन भावनाओं को आगे बढ़ाना चाहिए….क्षुद्रताएँ कहानी में कहानीकार ने हमारा ध्यान इसी ओर आकृष्ट किया है.
पद्मजा
किया है.
सर्वप्रथम रिशिका ओर टोली को इस रोचक प्रस्तुतीकरण के लिए बधाई.
क्षुद्रताएं कहानी में एक ज्वलंत समस्या को उभरा गया हैं- जात पात कि समस्या.
मुझे विशेषकर लगता हैं कि Caste is made by man for man.
कहने का तात्पर्य यह हैं कि यह समस्या मनुष्य कि मानसिकता में जन्मी हैं ओर हमारे समाज को खोकला करने पर तुली हैं.
जब तक हम इस बात को स्वीकार न ले कि हम सब इश्वर के संतान हैं तथा एक समान हैं. तब तक हमारा देश उन्नतिशील नहीं हो पाएगा.
मोरिशस मात्र नाम से एक बहुजातीय देश हैं. विडम्बना कि बात तो यह हैं कि एक ही धर्मं के लोगों में एकता भाव
नहीं हैं. बातें तो हम बहुत करते हैं लेकिन जब कर्म करने की बारी आती हैं, तो हम सब पीछे हठ जाते हैं
धन्यवाद 🙂