BA Yr 1 FT: Lecture 9 – काव्य-हेतु (started)

Friday 28 Oct 2011, 10.15-11.50, BA Yr 1 FT, Literary Theory & Forms of Literature

दोस्तो, आप लोगों को ऑनलाइन सक्रिय होने में मुझे लगता है कि मैं असफल होता जा रहा हूँ..

आपका सहयोग मिल ही नहीं रहा..

खैर, मैं अपना काम व ब्लॉगिंग उन लोगों के लिए जारी रख रहा हूँ जो इसमें रुचि लेते हुए अपनी शिक्षा वाली प्रक्रिया में प्रतिबद्ध है..

इस बार काफी लोग कक्षा में उपस्थित थे, हमने काव्य हेतु पर काम शुरु किया.. please refer to your handouts …

काव्य हेतु का अर्थ समझाते हुए, काव्य के मूल 4 तत्वों को समझाया गया: –

  1. रागात्मक तत्व / भाव तत्व – The Element of Emotion
  2. बुद्धि तत्व / विचार तत्व – The Element of Intellect
  3. भाषा-शैली तत्व – The Element of Expression
  4. कल्पना तत्व – The Element of Imagination
आपको यह भी समझाया गया कि कार्यों के साथ प्राय: 2 प्रकार के कारण होते हैं: –
  1. उपादान कारण (कार्य के साथ नित्य संबंध रखने वाले कारण, मिट्टी और घड़े का संबंध)
  2. निमित्त कारण (कार्य के साथ अनित्य संबंध रखने वाले कारण, घड़े और कुम्भकार का संबंध)
आगे, यह बताया गया कि संस्कृत आचार्यों ने 3 मूल कारण बताए है, काव्य-सृजन के लिए: –
  1. प्रतिभा (शक्ति)
  2. व्युत्पत्ति
  3. अभ्यास
इनमें से “प्रतिभा” काव्य का उपादान कारण है जबकि “व्युत्पत्ति” और “अभ्यास” निमित्त कारण है.
प्रतिभा 
प्रतिभा को आचार्यों ने ‘दीप्ति’, ‘प्रकाश’, ‘शक्ति’ आदि नामों से संबोधित किया है. “प्रतिभा कवि-मानस में काव्योपयोगी शब्दार्थ का ‘प्रकाश’ या ‘स्फुरण’ है.”
प्रतिभा को इन रूपों में देखी जा सकती हैं: –
  • कवि की उर्वर कल्पना
  • सूक्ष्म सौंदर्यानुभूति
  • संवेदनशीलता
  • शब्द और अर्थ की सूक्ष्म परख
  • सहज और स्वत: अभिव्यंजनशीलता
  • उन्मेष, विकास …
शेष अगली कक्षा में…  Please do come prepared .. thanks.

About Vinaye Goodary
senior lecturer in Hindi at the Mahatma Gandhi Institute, moka, mauritius. innovative in teaching using ICT, blogs and multimedia resources. interest in arts, culture, history and literature. शेष तो मैं ही मैं हूँ... स्वागत है.

52 Responses to BA Yr 1 FT: Lecture 9 – काव्य-हेतु (started)

  1. Varsha Goburdhun says:

    ग़ुरुजी,नमस्तेय
    वैसे तो काव्य हेतु काव्य लक्षण से अधिक रोमंचक हैं. इसके जो तत्व हैं वह समजने मैं ज़्यादा असान हैं. शायद आचर्यों की जो भी बातैं हैं,थोरा समय लगेगा! मगर इस् बार काव्य हेतु सेथो साहस बढा हैं.
    मुझे तो काव्य हेतु ही प्रिय हैं. हम आपके नोट्स को अप्ने शब्दों मैं धाल सक्ते हैं
    धन्य्वाद
    वर्षा

  2. Ourvashi Devi Moosnah says:

    मेरा सादर नमन,
    काव्य हेतु पर आधारित आपकी कक्षा अत्यधिक दिलचस्प थी. काव्य की रचना के लिए एक कवी में चार प्रमुख तत्व होना आवशक हैं.एक सफल कवी में संवेदनशीलता एवं भावात्मकता कूट कूट कर भरी हैं….
    और तो और वह एक जोहरी के समान हैं जो विचारों+शब्दों के साथ खेलता हैं. उसे चीजों को परखने की क्षमता हैं…
    उसके ह्रदय एवं मसितश्क में कल्पनाशीलता विघमान हैं.
    इसके अतिरिक्त हमें उपादान और निर्मित कारन के बारे में ज्ञात हुआ.
    एक तो उपादान कारन- जिसमें कार्य एवं कारन को अलग करना असंभव हैं…
    जैसे: शरीर को आत्मा से अलग नहीं किया जा सकता…
    निर्मित कारन- अगर कार्य एवं कारन को अलग किया जाये तो कोई फर्क नहीं पर्र्ता हैं…
    जैसे: एक अध्यापक एवं विद्यार्थी….
    काव्य की उत्पति ३ कारणों से होता हैं :१ प्रतिभा(उपादान कारन) जो जन्मजात हैं-inborn
    :२ व्युत्पति(निर्मित कारन)
    जिसे शास्त्र,काव्य,ज्ञान से अर्जित किया जाये.
    : ३ अभ्यास (निर्मित कारन)
    इसके अलावा यह सर्वज्ञात हुआ की प्रतिएक चीजों से पहचान सकते हैं की एक कवी के अंदर
    प्रतिभा हैं. उराहरण :कल्पना,भावात्मकता, सौंदर्य की अनुभूति ,शब्द और
    अर्थ को परखने की शक्ति, अभिव्यक्ति,विकास इत्यादि…..
    धन्यवाद

  3. kriteeka Gungaram says:

    सभी को नमस्ते।

    वैसे तो मेरे लिये शुक्रवर २८ ओच्तोबेर की कक्षा समजने के लिये आसान थी। मुझे काव्य-हेतु समज्ने के लिये उत्ना कथिनयि नही हुइ जित्त्ना हिन्दी साहित्य का इतिहस व काव्य लक्शन समज्ने मे हुइ थी।

    हर मनुश्य कविता नही लिख सक्ता।कवित लिख्ने के लिये जो गुण चाहिए, उन्हे काव्य हेतु कहा जाता हैं।
    आचार्यो ने तीन काव्य हेतु मने हैं जो इस प्रकार हैं:
    १)प्रतिभा, अर्थात शक्ति।
    २)व्युपति, अर्थात ज्यान।
    ३)अभ्यास।

    हर एक मनुश्य मे एक प्रतिभा होती है और यह शक्ति जन्म्जात होता है। व्युपति तथा अभ्यास, प्रतिभा का परिश्कार करते हैं।
    काव्य रच्ना क प्रमुख कारण है- आत्माभिव्यक्ति इच्चा हैं और इस के लिये प्रतिभा आवश्यक होता हैं। व्युपति और अभ्यास प्रतिभा का परिश्कर करते हैं।

  4. Alvina Janna Naikeny says:

    नमस्ते गुरूजी
    कव्य हेतु को समजने में कठिनाई नहीं हो रही थी. हमें काव्य के चार प्रकार के बारे में पता चला. कारण और कार्य को अलग नहीं किया जा सकता है. वे दोनों नित्य रूप से जूरे है.
    काव्य हेतु का मतलब काव्य के करण होता है और उसके तीन प्रकार के होते है:
    – प्रतिभा
    -व्याप्ति
    -अभयास
    अगली कक्षा में और बहुत जाने का मौका मिलेगा
    धन्यवाद.

  5. Luchoo Pooja says:

    नमस्ते ग़ुरुजी,

    काव्य निर्माण के पिछे जो कारण होता है उसे हेतु कहते है।
    आपने काव्य हेतु के 4 तत्वों को समझाया:-
    राग भाव में व्यक्ति भाव के साथ कविता अभिव्यक्त करता है।
    बुद्धि तत्व में हम विचार शील बनते है।
    भाषा-शैली तत्व में कवि अभिव्यक्त तथा सम्प्रेषण करता है।
    कल्पना तत्व में कवि के अंदर सूक्ष्मपर्यवक्षण और दूरदशिर्ता की शक्ति भी होते है।
    काव्य हेतु में 3 मूल कारण होते हैं-
    प्रतिभा
    व्युत्पत्ति
    अभ्यास।
    प्रतिभा उपादान कारण है लेकिन व्युत्पत्ति और अभ्यास निमित्त कारण है।
    प्रतिभा को हम ग्रहण नहीं कर सकते,वह अपने आप प्रकाशित होता है।आपने काव्य हेतु में एक handout
    दिये जहाँ काव्य हेतु में आचार्यों के विचार हैं।
    धन्यवाद।

  6. Ujoodha Priya says:

    काव्य की रचना के कारण को काव्य हेतु कहा जाता हैं…
    काव्य के प्रायः चार तत्व हैं :
    -रागात्मक तत्व / भाव तत्व
    -बुद्धि तत्व / विचार तत्व
    -भाषा-शैली तत्व
    -कल्पना तत्व
    काव्य हेतु के तीन मूल कारण हैं :
    -प्रतिभा
    -व्युप्पति
    -अभ्यास

  7. Sulakshana Roopowa says:

    नमस्ते गुरुजि,
    शुक्रवार को हम्ने कव्य हेतु की. कव्य हेतु समझने मे मुझे कठिनाई नही हुई. मुझे यह विशय अन्य विशयो के तूल्ना मे सब से सरल लगा.
    कव्य हेतु वह कारण जिस्से कोई कवि कविता लिख सके. वे कारण है:
    – प्रतिभा
    – व्युत्पति
    – अ्भ्यास
    प्रतिभा मु्ख्य कार्ण है. प्रतिभा जन्मजात होति है. प्रतिभा सिखा नहि जा सकता.
    मुझे कव्य हेतु पर और जान्कारी प्राप्त कर्ने के लिय आप्की अग्ली कक्शा कि प्रतीक्शा रहेगी.

    धन्य्वाद.

  8. Mamta Gopalsing says:

    मेरा सादर नमन,

    कव्य हेतु को समजना असान था.आप ने काव्य के मूल 4 तत्वों को समझाया,उपादान कारण तथा निमित्त कारण के बारे में बताया.आप ने ये भी कहा की प्रतिभा उपादान कारण का है.
    अंत: आप ने बताया किस तरह हमैं पता चलेगा की कवि में प्रतिभा हैं.
    यह कक्षा अन्य कक्षाओ से अत्यधिक दिलचस्प थी.

  9. Neeta Tawkoor says:

    नमस्ते गुरुजी.l
    क्शमा चाहती हू पेहले कक्शा के लिये comments नहि भेजे मै अनुपस्थित थी.नोतस के हिसाब से पिचली दो कक्शा (07.10.11) मै आपने जो काव्य लक्शन पर चर्चा किया,अर्थाथ ईस्मै जो भिन्न्न आचार्यो के विचार पर कविता पर आधारित सन्क्शेप रूप से प्रस्तुत किया,वह एकदम् रूची थी.lजैसे आपने कहा कि words are very limited and 90-95% of our expressions are ezpressed through our eyes and gestures.

    इसके बाद जो कक्शा आपने (18.10.11) पर किया,वह तो रीतिकाल तथा आधूनिक यूग पर बातचीत की.l रीतिकाल के कविता तथा आधूनिक यूग के कविता मे अन्तर महान है l .जैसे प्रेमचन्द के अनूसार “literature deals with life” and as per John ”reality + imagination = literature”.

    फिर से कश्मा चाह्ती हून गुरुजी.l

  10. Neeta Tawkoor says:

    सादर प्रनाम गुरुजी l

    काव्य हेतु पर पिचली बार जो पराए थे,वह काफ़ी दिलजस्प तथा विचार्शील थे.l काव्य के प्रमूख भेद पर विस्तार रूप से प्रकाश दाला है l इसके आन्तरिक,काव्य हेतु के भेद बताए है जैसे :

    प्रतिभा

    व्युत्त्पति

    अभ्यास

    अग्ली कक्शा मै पराजय की व्याख्या पर और ज़्यादा बल आप दैगै,प्रतिक्शा होगी l

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  12. khus21jaan says:

    काव्य हेतू में बहुत सारी नयी बातें सिखने को मिली…हम जानते हैं कि आप हुम छात्रों से काफी नाराज़ हैं क्योंकि हम ओंलाइन सुविधा को काफि लाइत्ली लेते हैं…हुम ये भी जानते हैं कि आपको बहुत सारे अन्य कामों के लिये वक़्त निकालना परता फिर भी आप हमारे सुविधा के लिये, हमारे खोज कार्य को और आसान बनाने के लिए,आपने एक और website का निर्मान किया है और इस सुविधा के लिए..हुम आपको तहे दिल से धन्यवाद करते हैं…

    आपने जो भी कुछ हमें सीखाया….वो काफि clear था..

    (VARSHA SOUNITEE GOPEE)

  13. Alvina Janna Naikeny says:

    पानी का महत्व

    पानी तो अनमोल है
    उसको बचा के रखिये
    बर्बाद मत कीजिये इसे
    जीने का सलीका सीखिए
    पानी को तरसते हैं
    धरती पे काफी लोग यहाँ
    पानी ही तो दौलत है
    पानी सा धन भला कहां
    पानी की है मात्रा सीमित
    पीने का पानी और सीमित
    तो पानी को बचाइए
    इसी में है समृधी निहित
    शेविंग या कार की धुलाई
    या जब करते हो स्नान
    पानी की जरूर बचत करें
    पानी से है धरती महान
    जल ही तो जीवन है

  14. kriteeka Gungaram says:

    मुस्कान।

    सुन रे सखी पीया के ये सन्घर्श,
    जीवन ने उसे क्या-क्या रग दिखाया
    बचपन ने कोमल जान को सूना पल्ना और मम्ता की च्हिता दिखाया
    नन्हे हाथों ने तीर और तल्वार को खिलोना माना
    घास पे लेटे हुए तारो का चम्क्ना देखा
    मित्ती की खुश्बू तन पे, बिखरे बाल, पेर नँगे
    बड़ा ऐसे हुए जैसे किछर में कमल का फुल खिल रहे हैं
    पिता के प्यार से
    हुआ मेरा आज सिधा-साधा
    किया किसी ने इस सिधे-साधे को कठोर
    इर्शा,नफ्रत से
    फिर भी
    आसु को सीने में दबाकर मुस्कुरता है वह
    च्हेरे पर मुस्कान लाता है वह

  15. Varsha Goburdhun says:

    “आशा”

    बच्च्पन,यौवन और बुढापा
    जीवन के तीन प्रमुक पहेलु !
    जीवन क्या इसी तरह से बीता ?
    वह श्रोत क्या ?
    वह प्रेर्णा क्या ?
    आज के युग में वह कहाँ ?
    क्या इसी तरह जीवन व्यथित होगा ?
    समाज में इस की अव्श्यक्ता अनिवर्य हैं!!!

    आशा ! आशा !

    बच्चा आशा के साथ हस्ता हैं,
    युवक आशा के सथ आगे बढ्ता हैं,
    बुढा आशा के साथ बाकी कुचि जीवन जी लेते हैं!
    आशा ही मानो जीवन कि एक पहिया !
    बिना पहिया, हमरा वाहन रुपी जीवन
    थप पर जएग!
    कौन जाने क्या होगा…
    आशा सदैव ही जीवन मैं उपस्थित हैं…
    कब, कहाँ और किस् से उत्त्पन्न हो…

    इस की तलाश जारी रखिएगा
    जीवन के किस मोर पर मिले

    आंखै खूलि रखिएगा!…

  16. ramjheetun karishma devi says:

    GURUDEV namastey
    dnt u worry now mai har bar block dekha karougi kyunki aaj se internet UNLIMITED HAI MERA. deri ke liye mai shama mangti hou.

  17. Madhvi Bholah says:

    भिखमंगे

    भिखमंगे चारों और पाए जाते है।
    भूख से तरपते हूए,खाने के लिए कुछ भी नहीं।
    ठंड से काँपते हूए मगर शरीर पर दंग के कपड़ा नहीं।
    सारा दीन खड़ी धूप में रहने और रात में आराम करने के लिए जगह नहीं।
    हवेलियों में जन्म लेना सब के भाग्य में नहीं होता।
    भिखमंगे सड़क पर जन्म लेते है,वहीं पर मर जाते है।
    लेकिन कौन परवाह करता है इन भिखमंगों का ?

  18. prinita mutty says:

    यह ग़रीबी रेखा है, ग़रीबी उन्मूलन
    अथवा ग़रीबों का पूर्णतया उन्मूलन
    यह ग़रीब की रेखा क्या है ?.
    कौन है, किसने उसे देखा है ?.
    यह ग़रीब की रेखा है :
    उसकी लाचारी, बीमारी,बेरोज़गारी,
    भूख़मरी, शोषण, चिन्ता,
    बचपन में ही बुढ़ापे जैसी झुर्रियां,
    तन न ढकने की मज़बूरियां,
    भूख़ से पेट में पड़ी लकीरें,
    रेत में आशा की लकीरें,
    समुद्र में उठती हुई लहरें,
    भाग्य की मिटी लकीरें,
    नितदिन बिगड़ती तकदीरें,
    असफल होती हुई तदबीरें,

    यह रेखा उसकी बेटियां है, उसे बड़े ही लाड़ चाव से पाला है
    उसे खिलाने न निवाला है, स्वयं के लिए न चाय का प्याला है

    उसकी रेखा को नेता, अभिनेता
    पत्रकार, समाचार, अर्थशात्री, समाज़शात्री
    हर कोई भुनाने में लगा है
    हर कोई अपनी भाषा में , परिभाषा बताने लगा है

    फ़िल्म निर्माता का, आस्कर पुरुस्कार का चक्कर,
    ग़रीब- रेखा को अधिकाधिक दिखाने की टक्कर।
    भूख़ से शरीर हो गया, कंकाल अस्थि पंजर,
    जिसका शरीर नोचना चाहते हैं, कितने भ्रमर।
    बलात्कार बाद, घोंप दिया जाता है उसे खंज़र,
    जिसकी रक्षा करने आए न अभी तक नटवर।

    राजनेता भाषण देकर , राजनैतिक लाभ चाहता है,
    मीडिया पत्रकार केवल , बिक्री बढ़ाना चाहता है।
    समाज़शास्त्री, समाज़ में नाम कमाना चाहता है,
    शोध कर्ता, बस शोध कर उपाधि लेना चाहता है।

    यह रेखा कभी छोटी हो जाती है,
    कभी अचानक बड़ी हो जाती है।
    कुछ इसको छोटा करने में लगे हैं,
    कुछ इसको बड़ा दिखाने में लगे हैं।

    ग़रीब रेखा है वह क्षितिज़ रेखा,
    जिसे कभी किसी ने नहीं देखा।
    अपनी अपनी कल्पना में देखा,
    जैसा देखा, वैसा दिया लेखा जोखा।

    ग़रीब रेखा के ज्ञाता, आयेंगे माँगने तेरा वोट,
    पांच साल सारोकर नहीं, बाटेंगे एक दिन नोट।
    तुझको रेखा से एक दिन ऊपर उठायेंगे,
    ख़ुद भिखारी बन कर, तुझे दाता बनायेंगे।

  19. Doorvatee Kaullysing says:

    कहाँ होगा समस्यओं का हल !!!

    कहाँ जा रहा है हमारा समाज
    कैसी स्थिति आन पड़ी है आज
    क्यो मनुष्य से नराज़
    घृणा ईष:य जलन क्रोध द्व्शे और डर के विरोध मैं
    कौन उठयेगा अपना आवाज़
    हत्या बलात्कर हिंसा लूतपाट
    का क्यो है बोलबाला
    जहाँ तहाँ
    हाँ मनुष्य उस व्रिक्श
    जो बिना किसी स्वार्थ के
    फल फूल छाया देती है
    क्यो उस उपर वाले की लाठी का डर नहीं आज
    किस ओर चला है हमारा समाज
    क्यो औढ़े है मनुष्य पाप की गठ्री का ताज
    जीयो जीयो चलकर अछाई के मार्ग
    बन जाओ अपने एक योग्य महाराज
    भुल जाओ निराशा
    ढूंढो कीरन की आशा

  20. niveta chooramun says:

    मुझे आवाज उठाने दो

    मुझे आवाज उठाने दो,
    हाशिये से अब तो मुझे
    मुख्य पटल पे आने दो।
    कब तक आँसू पीती रहूँ
    अब तो उसे बहाने दो।
    अबला बनकर बहुत अत्याचार सहा,
    अब तो बला बन जाने दो।

    कितनी अग्निपरीक्षायें लोगे मेरी
    कभी मुझे भी तो आजमाने दो।
    आधी आबादी की पूरी हकीकत
    अब दुनिया को बतलाने दो।
    मुझे आवाज उठाने दो…..

    आरक्षण से मुझे मत दबाओ
    खुद अपनी जगह बनाने दो,
    हमें भी हक़ है आजादी का
    समाज के बँधन से मुक्त हो जाने दो।
    मुझे आवाज उठाने दो…..

    ज्योति बन कर कब तक फूँक सहूँ
    अब तो ज्वाला बन जाने दो।
    सीता सावित्री बहुत हुआ
    अब तो काली कहलाने दो।
    मुझे आवाज उठाने दो…..

    पुरूषों की पाशविकता से
    अब तो पिंड छुड़ाने दो।
    नीची नजरों से बहुत ज़ुल्म सहा
    अब दुनिया से नज़र मिलाने दो।
    मुझे आवाज उठाने दो…..

    चाहरदीवारी भी अब सुरक्षित नहीं
    उससे बाहर आ जाने दो,
    सुनती रही अब तक आज्ञा
    अब तो आदेश सुनाने दो।
    मुझे आवाज उठाने दो…..

    आजादी के सपने को
    हमें भी साकार बनाने दो,
    वीरों के बलिदानों को
    हमें भी भुनाने दो।
    मुझे आवाज उठाने दो…..

    कुछ नहीं कर सकते तो
    इतना कर दो,
    माँ की कोख से कम से कम
    बाहर तो आ जाने दो।
    मुझे आवाज उठाने दो…..

  21. Pooja Luchoo says:

    पानी
    पानी है जीवनदायिनी।
    प्यासे को मोक्ष प्रदायिनी।
    भौतिक संसार में पानी का न रहा महत्व,
    भुल गये है कि पानी है जीवनदाता।
    बिन पानी हमारा क्या होगा?
    पानी की समाप्ति,संसार में सच जाएगी हाहाकार।
    समय हुआ है पानी बचाने का,
    अन्यथा पानी के बूंदों को तरसेंगे हर प्राणी।
    समय हुआ है नारे लगाने का-
    पानी व्यर्थ न करो।
    पानी प्रदूषित न करो।
    पानी बचाओ,पानी बचाओ।
    पानी है तो घरती है।
    पानी की रक्षा करना हमारा कतर्व्य है।

  22. Pooja Luchoo says:

    पानी
    पानी है जीवनदायिनी।
    प्यासे को मोक्ष प्रदायिनी।
    भौतिक संसार में पानी का न रहा महत्व,
    भुल गये है कि पानी है जीवनदाता।
    बिन पानी हमारा क्या होगा?
    पानी की समाप्ति,संसार में मच जाएगी हाहाकार।
    समय हुआ है पानी बचाने का,
    अन्यथा पानी के बूंदों को तरसेंगे हर प्राणी।
    समय हुआ है नारे लगाने का-
    पानी व्यर्थ न करो।
    पानी प्रदूषित न करो।
    पानी बचाओ,पानी बचाओ।
    पानी है तो घरती है।
    पानी की रक्षा,हमारा कतर्व्य है।
    [Sorry Guriji there was error in the first poem..now i have correct it!!]

  23. khus21jaan says:

    दखों के काले बादल से घीरे
    गा रहा है गीत कोई
    “जीवन एक छ्लना है”
    “रोना हसना एक सत्य है”

    काटों से भरे दु:खों के बादल से घीरे
    जो था शय्शव की मुस्कान
    आज परा है निश्प्रान

    जो था देवता का साज
    धूल धुसरित बना वो आज
    “जीवन एक छ्लना है”
    “रोना हसना एक सत्य है”

    निराश होकर खेल रही
    मेरी आंखों की खाल निकोबार
    द्वीप समुह में मंद प्रकाश की लैनी

    प्रकाश में नये प्रकाश है उज्जवलती
    तरामय रात की मौनता को है उभारती
    जीवन के चंद्रग्रहन को है मिटाती

    “जीवन एक छ्लना है”
    “रोना हसना एक सत्य है”
    “चुप्पी में छुपे अव्यक़्त शब्द”
    “हल्की हसीं में दबे हजारों दर्द”
    …………………………………
    येही जीवन का सत्य है

    ( Sounitee Varsha Gopee)

  24. Ujoodha Priya says:

    पेड़ का चमत्कार

    जीवन के होते हुए भी,
    तुम्हें रखता हूँ मैं जीवित।
    तुम्हारे भूख और प्यास को करता हूँ मैं शांत।
    उपेक्षित होते हुए भी,
    करता हूँ आप लोगों का इलाज।
    पक्षी के आश्रय के रूप में,
    सुनते हैं आप मधुर गीत।
    मद-भेद न करके,
    देता हूँ सबको छाया।
    करता हूँ गठने में बादलों की मद्दत।
    यहाँ तक,
    बच्चे बनाते हैं,
    मुझे अपने खेल का हिस्सा।
    अकेलेपन में,
    मुझसे साझा आपने अपने दुःख-सुख।

  25. Soumaan Puran says:

    गंगा
    न चंचल चित्वन
    न सुन्दर काया
    पर तु न कोई माया
    तु है गंगा

    तेरी पुजा करते सभी
    कह्ते तुझको देवी
    पर है क्या यह सत्य
    तेरा मोल पता है क्या जगत को?

    भौतिकता की भवँर मे जँसा यह
    लोक
    जान न पाया तेरा मोल
    क्या? स्मरण न रहा इसको
    कि तु है प्राणदायीनी
    तु ही है मोक्षदायीनी

    अपने कुकर्मो मे गवाँ रहा तुझको
    संसार
    हर जगह मच रहा हाहाकार

    हे मानव अब तो जाग
    मान रख अपने इस देवी का
    कही एसा न हो
    रूपट हो , चली वह जाए
    चोड़ , तुझे असहाय

    समय आया है अब
    प्रमानित करो , अपनी श्रद्धा
    अपनी चेष्टाओ से
    प्रदान करो इसे सुरक्षा

    यह निरमल जल
    गंगा
    तुम्हारी गंगा.

  26. Namrata Bholah says:

    स्वस्थ जीवन

    आधुनिक संसार में मच रहा कैसा है कोलाहल ,
    डॉक्टर चिकित्सक भी नहीं ढूँढ पा रहे हैं इस का हल ,
    उच्च रक्त चाप , मधुमेह , एड्स मानव शरीर को कर रहे हैं उथल पुथल
    मृत्यु उन का आलिंगन कर रही है पल – पल

    पाकर स्वस्थ जीवन का वरदान
    हो गया है मनुष्य अभिमान
    ग्रहण कर के अनुचित खान – पान
    पीड़ित होकर मूर्खों की भाँति ढूँढ रहे हैं समाधान

    गर्भवती भी कर के मदिरा व धूम्रपान
    कह रही है यही है हमारा गर्भादान
    दूषित जल से कराह रहा है संतान
    स्वास्थय गवाँ कर , फिर भी व्यक्ति महान !

    दान देकर बहुमूल्य स्वास्थ्य को क्रय कर रहे हैं विलाप – संताप
    त्रास , एवं क्रन्दन से छिप गया है स्वस्थ प्रताप
    हेतु बने हैं मानव , कमा रहे हैं असंख्य पाप
    भूल गए है संतुलित आहार एवं व्यायाम से घट जायेंगे ये दुःख अपने आप

  27. parmeetah deeljore says:

    कह्ते है नारी है प्रेम का आधर
    लेकिन भगवान से भी मागा गया
    अपने सत्वि क्स प्रमाण
    क्या नही है उसे जीने का अधिकार

    कह्ते है नारी है घर की इज़्ज़्त
    लेकिन लगा दिया पान्दवो ने
    उसे दाव पर उस वक्त
    क्या नही है उसे जीने क अधिकार

    कह्ते है बदल गया है समाज अब
    मिलता है उसको भी अपना हक
    परन्तु बनकर रह गयी वह वासना का शिकार
    क्या नही है उसे जीने का अधिकार

    कह्ते है नारी है जीवन का आधार
    परन्तु उथाया जाता है उसकी
    परवरिश पर सवाल
    क्या नही है उसे जीने का अधिकार

    अब समय आ गया है बदलाव का
    प्रशन है नारी के सम्मान का
    सिस्कियो से आवाज़ आई ‘बस’
    नही सहेगे अब हम ये अत्याचार
    हमे भी है, हा हमे भी है
    जीने का पुरा अधिकार

  28. Sheoram sheetal says:

    झूठ तो झूठ है अकेलापन
    अकेलापन सुखद अहसास है
    यह तो लोगों को
    परखने का साधन है
    मन को, अनुभवों को
    विस्तार मिलता है
    अकेलापन खुद को खुद से
    सिखाता है प्यार करना
    भीड़ में खड़ा व्यक्ति
    भले ही भ्रम में रहे
    पर सच यह है कि वह
    खुद में भी अकेला है
    कोई किसी के पास होने का
    दम नहीं भर सकता
    परछाइंर् तक साथ नहीं देती
    अमावस की
    अंधेरे में खो जाती है
    अकेलापन!
    कई भ्रमों को तोड़ता है
    खुद को खुद से जोड़ता है..

  29. ramjheetun karishma devi says:

    मै जननी हू तुम्हरी,
    मै जननी हू तुम्हरी,
    तू मेरा पुन्न है.
    तुमको मुझसे क्या बैर,
    मैने तुमको जनम दिया,
    मैने तुमको प्यार दिया,
    वक्त बेवक्त मैने तुम्हारी चिन्ता की,
    तुम्हरी हरेक आसू को अपना माना,
    तुम्हरी हरेक आसू को अपना समझा,
    किन्तु आज मेरे साथ पराये जैसा व्यवहार क्यो???
    जिसकी गोद मे पलकर
    किलकारी मारते हुए तू हसता,
    आज तू उसी माता के दुध की किमत…
    शनै शनै मेरी सुन्दरता को नश्त पहुचाता,
    मेरॆ जःगलो को काट,
    मेरॆ जःगलो को जलाकर,
    तू सोने का घर बनाता,
    मेरॆ सागर के रेतो को निकाल,
    तू खुशिया मनाता,
    मेरे जल को तू अपमानित करता,
    मेरे जीवन को तू नश्ट करता,
    तू मेरा पुत्र है
    इस सत्य को जान,
    सत्मार्ग पर चल
    सत्मार्ग पर चल

    RAMJHEETUN KARISHMA DEVI

  30. ramjheetun karishma devi says:

    मै जननी हू तुम्हरी,
    मै जननी हू तुम्हरी,
    तू मेरा पुत्र है.
    तुमको मुझसे क्या बैर,
    मैने तुमको जनम दिया,
    मैने तुमको प्यार दिया,
    वक्त बेवक्त मैने तुम्हारी चिन्ता की,
    तुम्हरी हरेक आसू को अपना माना,
    तुम्हरी हरेक आसू को अपना समझा,
    किन्तु आज मेरे साथ पराये जैसा व्यवहार क्यो???
    जिसकी गोद मे पलकर
    किलकारी मारते हुए तू हसता,
    आज तू उसी माता के दुध की किमत…
    शनै शनै मेरी सुन्दरता को नश्त पहुचाता,
    मेरॆ जःगलो को काट,
    मेरॆ जःगलो को जलाकर,
    तू सोने का घर बनाता,
    मेरॆ सागर के रेतो को निकाल,
    तू खुशिया मनाता,
    मेरे जल को तू अपमानित करता,
    मेरे जीवन को तू नश्ट करता,
    तू मेरा पुत्र है
    इस सत्य को जान,
    सत्मार्ग पर चल
    सत्मार्ग पर चल

  31. नमस्ते गुरुजी! 🙂
    कविता : “कविता कहना चाहता हूँ”

    मैं कविता कहना चाहता हूँ
    हर बार
    हर उस बार.. जब भी सच किया जाता है नज़रबंद
    झूठ को किया जाता है बाइज्ज़त बरी
    जब ज्ञान को विज्ञान बनने से रोका जाता है
    तब से मैं कविता कहना चाहता हूँ

    जब चढ़ाया जाता है तख़्त-ए-फांसी

    जब रोटी खरीद पाने की असमर्थता में
    किसी देह को बिकते, रौंदे जाते पाता हूँ
    जब चिलचिलाती सर्दी में
    चाय के अनमंजे गिलासों और चमचमाते बर्तनों के बीच दबी
    मासूम की स्कूल की फीस देखता हूँ
    तब से मैं कविता कहना चाहता हूँ

    मोहल्ले भर की साड़ियों में
    फौल लगाती एक माँ की आधी भरी गुल्लक और
    उसकी सूती धोती के छेदों में से जब
    बच्चों के भविष्य की किरणें निकलते देखता हूँ
    जब दूध की उफनती कीमतों और
    चश्मे के बढ़ते नंबर में देखता हूँ समानुपात
    जब चार दीयों के बीच
    नकली खोये सी दिवाली देखता हूँ
    तब से मैं कविता कहना चाहता हूँ

    जब किसी के साल भर के राशन की कीमत
    ज़मीं से दो फुट ऊपर चलने वालों के
    साल के आख़िरी और पहले दिन के बीच के
    तीन-चार घंटों में उड़ते देखता हूँ
    तब मैं कविता कहना चाहता हूँ

    जब महसूसता हूँ एक रिश्ता
    तकलीफ से इंसान का
    जब निर्वाचित पिस्सुओं को
    अवाम की शिराओं से रक्त चूसते देखता हूँ
    जब शक्ति को शोषक का पर्याय होते देखता हूँ
    तब से मैं कविता कहना चाहता हूँ

    जब एक मॉल की खातिर
    सब्जियों, फलों और अनाज के हक की ज़मीनों पर
    सीमेंट पड़ते देखता हूँ
    कागजी लाभों वाले बाँध के लिए
    मिटते देखता हूँ जंगलों, गाँवों के निशान
    गरीब के खेत औ घर का सरकारी मूल्य
    अफसर के मासिक वेतन से कम देखता हूँ
    तब से मैं कविता कहना चाहता हूँ

    ये कविता अमर नहीं होना चाहती
    और ना ही कवि…
    फिर भी जब सम्मान-अपमान से विलग हो
    कुछ करना चाहता हूँ
    तब मैं कविता कहना चाहता हूँ
    या शायद कहना ना भी चाहूँ तब भी
    कविता कहलवा लेती है खुद को

    ये कवितायें लाना चाहती हैं परिवर्तन
    निर्मित करना चाहती हैं नई मनुष्यता

    मैं बीज की सी कविता रचना चाहता हूँ
    क्रान्ति की नींव रखना चाहता हूँ
    क्योंकि जानता हूँ
    कल मैं रहूँ ना रहूँ
    ये वृक्ष बनेगी एक दिन
    एक दिन इस पर आयेंगे फल संभावनाओं के
    एक दिन वक़्त का रंगरेज़ आज के सपने को
    हकीकत के पक्के रंग से रंगेगा जरूर…
    धन्यवाद. 🙂

  32. ramjheetun karishma devi says:

    “मै जननी हू तुम्हरी”

    मै जननी हू तुम्हरी,
    मै जननी हू तुम्हरी,
    तू मेरा पुत्र है.
    तुमको मुझसे क्या बैर,
    मैने तुमको जनम दिया,
    मैने तुमको प्यार दिया,
    वक्त बेवक्त मैने तुम्हारी चिन्ता की,
    तुम्हरी हरेक आसू को अपना माना,
    तुम्हरी हरेक आसू को अपना समझा,
    किन्तु आज मेरे साथ पराये जैसा व्यवहार क्यो???
    जिसकी गोद मे पलकर
    किलकारी मारते हुए तू हसता,
    आज तू उसी माता के दुध की किमत…
    शनै शनै मेरी सुन्दरता को नश्त पहुचाता,
    मेरॆ जःगलो को काट,
    मेरॆ जःगलो को जलाकर,
    तू सोने का घर बनाता,
    मेरॆ सागर के रेतो को निकाल,
    तू खुशिया मनाता,
    मेरे जल को तू अपमानित करता,
    मेरे जीवन को तू नश्ट करता,
    तू मेरा पुत्र है
    इस सत्य को जान,
    सत्मार्ग पर चल
    सत्मार्ग पर चल

    RAMJHEETUN KARISHMA D

  33. Ourvashi Devi Moosnah says:

    दुःख;
    क्‍या तुम्‍हारा दुख उससे बड़ा है ?

    सात साल की वो मासूम

    जो कचरे के ढेर से

    एक जोड़ी चप्‍पल मिलने पर खुश है

    अपनी छोटी बहन को पहना कर

    नाप देखती, फिर उतारती

    फिर पहनाती और …मह

    मायूस हो जाती ,सही माप न आने पर

    फिर लग जाती अपने काम में

    जैसे समझ लिया हो नंगे पांव

    चलना ही उसकी नियति हो

    क्या तुम्हारा दुःख उससे बरा हैं?

    जो बारह वर्ष की उम्र में

    पढ़ाई छोडकर दस घरों का

    चौका बर्तन करती है ,जिससे

    उसके बाकी के चार और

    भाई बहनो का भर सके पेट

    कभी कभी काम वाले घरों में

    खिलौनों और किताबों को

    उम्‍मीद से देखती है, फिर

    काम में जुट जाती

    जैसे कि अब यही उसकी नियति है

    क्‍या तुम्‍हारा दुख

    इन सबसे बडा है ?

    अगर तुम्‍हे अब भी लगता है

    कि हाँ……तो ,तुम

    इस पृथ्वी के सबसे दुखी व्‍यक्‍ति हो

    कि तुम्‍हारे पास जीवन जीने की

    मूलभूत चीजें भी नहीं है

    और तुम इन सबसे भी

    गए बीते हालात में हो

    तब तो तुम्‍हें अवश्य मर जाना चाहिए
    मर ही जाना चाहिए।

  34. Sulakshana Roopowa says:

    पृथ्व हमारी माँ

    तु है जननी,
    पर किसी ने नही जाना तेरा मोल

    तु है बिना कोइ बोल
    और किया न किसी से शीकायत
    दिया त्म्ने बिन किसि उम्मीद
    पेड़- पौधे सब है तेरी देन
    पर किसी ने नही जाना तेरा मोल

    क्रिस्टल स्पष्ट समुद्र में तेल फैले,
    धुआँ एक बार नीले आसमान भरता है
    फिर भि तु है बिन बोल.
    किसी ने कभी न जानी तेरा मोल.

  35. कैलाश दावोराज़ says:

    ♠♠{{ नारी शोषण व उसकी अस्मिता }}♠♠

    हे नारी!
    तू कितनी है न्यारी
    सारी सृष्टि कहती है तुमको जननी
    लेकिन अकेली ही सारी कठिनाइयाँ सहती
    हे नारी!
    तू कितनी है न्यारी I

    भले ही समाज में हुआ तुम्हारा
    मौखिक रूप से दुर्व्यवहार
    लेकिन वीरों तुल्य तुमने मानी नहीं हार
    हे नारी!
    तुम्हारी लीला है अपरम्पार I

    कहते है कि तुम हो जीवन का आधार
    परन्तु उठाया जाता है तुम्हारे पालन-शोषण पर सवाल
    अल्पसंख्यक रूप से होती जा रही हो तुम शोषित
    परिणामस्वरूप होती जा रही हो तुम कुण्ठित
    हे नारी!
    तू कितनी है न्यारी I

    मनुष्य ने तुम्हें मात्र यौन के रूप में देखा
    कभी तुम बनी बलात्कार का शिकार
    कभी तुम्हें वेश्या के रूप में देका
    तो कभी तुम्हें दुर्गा के रूप में पूजा
    लेकिन, हे नारी! तुमने मानी नहीं हार I
    घर में तुम परोसती हो स्वाद
    पति, बेटे के बीच मतभेदों को
    को कभी आँचल में बाँधती
    तो कभी अकेली ही सारी दुःख झेलती
    हे नारी! तुम हो हमारे जीवन की पूँजी I

    नारी तुम हो जीवन का एक सिक्का
    सहती भी है नारी
    शतरंज कि बिसात परतो कभी मोहरा भी है नारी
    मूक दर्शक से देखती है हम तमाशा
    संचालन है तुम्हारा
    परन्तु तुम्हें माना गया है समाज की कठपुतली I

    हे नारी!
    जल्द ही तुझे दिखाई दे मात्र एक तारा
    जो बने तुम्हारे जीवन का ध्रुवतारा
    तुम्हारे अस्तित्व का क्या कहना?
    संघर्षशील, प्रगतिशील एवं विकासशील हो ही तुम
    माक तुम्हें सब्र का दवा चाहिए
    तभी मिलेगा तुम्हारे समस्या का समाधान I

    हे नारी!
    तू है कितना महान
    इसी प्रकार बचाए रखना अपनी पहचान
    ताकि मनुष्य करे तेरा ही गुण – गान
    हे नारी!
    तू कितनी है न्यारी I
    हे नारी!
    तू कितनी है न्यारी I

  36. khusboo chooramun says:

    माँ..
    मेरी अस्तित्व,मेरा मान
    मेरे सर्वस्व की पहचान
    अपनी आँचल का देती हो छाँव
    प्यार की सागर में हमें लपेट्टी हो
    आकाश के तारे तोड़ लाती हो
    हमारे हर कष्ट से
    हर आहत पर मुड़ आती हो
    ममता की लोरी गाती हो
    हमारे सपनों को हरदम सहलाती हो
    गाती रहती, मुस्कराती रह्ती हो
    व्रत उत्सव त्योहरों को
    कभी न तुम भुला करती
    सम्बंधों की दोर पकड़ कर
    आजीवन झूला करती
    हे ममता की पवित्र मूर्ति
    तुम्हरे कदमों में जन्नत है मेरी
    तुम ही तो मन्नत हो मेरी…

  37. Mamta Gopalsing says:

    बाजारवाद —
    मैंने कहा
    भारतीय संस्कृति मे
    बेटी के घर का खाना
    उचित नहीं माना जाता,
    हमारी परम्परा
    बहन ,बेटी को देने की है
    उनसे कुछ भी लेने की नहीं|

    लोगों ऩे मुझे पढ़ा,सुना और
    अतीत की दिवार पर चस्पा कर दिया,
    मुझे भारी जवानी मे
    बूढ़ा करार दे दिया गया|
    बाजारवाद के इस दौर मे
    सभ्यता और संस्कृति के
    शाश्वत नियमों का उल्लंघन,
    अंतहीन,प्रयोजन रहित
    बहस करना
    वर्तमान बता दिया|
    और
    एक नई बहस को जन्म दिया
    कि नारी
    मात्र वस्तु है,भोग्य है
    तथा
    उसे विज्ञापन बना दिया,
    घर,दफ्तर से
    दिवार पर लगे पोस्टर तक|
    और नारी खुश हो गई
    पैसों कि चमक मे|
    शायद
    इन आधुनिक बाजारवादी लोगों के लिए
    कल बहन और बेटी भी
    वस्तु / विज्ञापन
    या भोग्य बन जायेंगी
    यही इनका भविष्य होगा|
    और हम
    काल के गर्त मे समाकर
    प्राचीन असभ्य युग मे
    वापस आ जायेंगे |

    सच ही तो है
    इतिहास स्वयं को दोहराता है |
    स्रष्टि के विकास क्रम मे
    मनुष्य नंगा रहता था,
    आज हम पुनः
    बाजारवाद की दौड़ मे
    सभ्यता को छोड़कर
    नग्नता की और बढ़ रहे हैं,
    मन से भी और तन से भी |
    प्राचीन कबीलाई संस्कृति को
    पुनः अपना रहे हैं,
    जातिवाद,क्षेत्रवाद व धर्मवाद के
    नए कबीले
    तैयार किये जा रहे हैं|

    असभ्य मानव
    अज्ञानवश पशुओं को खाता था
    आज बाजारवाद मे
    प्रायोजित तरीकों से
    पशु-पक्षियों को
    खादय बताया जा रहा है,
    जिसके कारण
    अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो गयी
    कुछ होने के कगार पर हैं,
    मगर हम सभ्य हैं,
    बाज़ार की भाषा मे
    विकास कर रहे हैं,
    जंगलों को काटकर
    मकान तथा
    अस्त्र शस्त्र निर्माण कर रहे हैं|
    अब हैजे या प्लेग जैसी
    बीमारी की जरुरत नहीं,
    सिर्फ एक बम ही काफी है
    लाखों लोग नींद मे सो जायेंगे,
    उनके संसाधनों पर
    हम कब्ज़ा जमायेंगे|

    यही तो होता था,
    कबीलों मे भी
    जिसने जीता
    स्त्री,पुरुष,धन संपत्ति
    सब उसकी
    और आज भी यही होता है
    जंगल के राजा
    शेर के व्यवहार मे
    बंदरों के संसार मे,
    और
    इन आधुनिकों के
    उन्मुक्त विचार मे,घर,व्यापार मे|

    हम
    सुनहरे कल की और बढ़ रहे हैं,
    वह सुनहरा कल
    जिसका आधार
    बीता हुआ कल है,
    जिसका वर्तमान
    लंगड़ा व अँधा है,
    जिसका भविष्य
    अंधकारमय है,
    और
    जो स्थिर होना चाहता है
    बाजारवाद के
    खोखले कन्धों पर |

    तमसों माँ ज्योतिर्गमय |

  38. Chandinee Jokhoo says:

    पानी

    पानी तो अनमोल है
    उसको बचा के रखिये
    बर्बाद मत कीजिये इसे
    जीने का सलीका सीखिए

    पानी को तरसते हैं
    धरती पे काफी लोग यहाँ
    पानी ही तो दौलत है
    पानी सा धन भला कहां

    पानी की है मात्रा सीमित
    पीने का पानी और सीमित
    तो पानी को बचाइए
    इसी में है समृधी निहित

    शेविंग या कार की धुलाई
    या जब करते हो स्नान
    पानी की जरूर बचत करें
    पानी से है धरती महान

    जल ही तो जीवन है
    पानी है गुनों की खान
    पानी ही तो सब कुछ है
    पानी है धरती की शान

    पर्यावरण को न बचाया गया
    तो वो दिन जल्दी ही आएगा
    जब धरती पे हर इंसान
    बस ‘पानी पानी’ चिल्लाएगा

    रुपये पैसे धन दौलत
    कुछ भी काम न आएगा
    यदि इंसान इसी तरह
    धरती को नोच के खाएगा

    आने वाली पुश्तों का
    कुछ तो हम करें ख़्याल
    पानी के बगैर भविष्य
    भला कैसे होगा खुशहाल

    बच्चे, बूढे और जवान
    पानी बचाएँ बने महान
    अब तो जाग जाओ इंसान
    पानी में बसते हैं प्राण

  39. Neeta Tawkoor says:

    अविद्या का प्रचार

    यदि मुझे पता होता

    कि अधिक पद-लिख जाने से

    मनुश्य मनुश्य नही रेहता

    और उसके सदय ह्र्दय का

    दया माया मोह करुना का

    अक्शय स्त्रोत सूख जाता है

    और इर्श्या जलन दुर्भावना

    एक दुसरे से होर लगाती है

    मै अवश्य अविधा का प्रचार करता

    मै दया-करुना का प्रसार करता

    यदि अविधा से मानव

    मानव ही बना रह पाता !

  40. Sarika Devi Judhun says:

    यही है सच

    जीवन के अनिश्चित राहो पर
    कई लोग आते हैं, मगर
    उनमे कुछ करते हैं आबाद
    और कुछ कर देते हैं बरबाद

    जाते हैं कई देकर दुआऎ
    जीवन के लिए जो बन जाती है दवाऎ
    स्रिश्टि की रंगमंच पर
    आते हैं एक समान
    लेकिन सांसारिक माय़ा-जाल मॆ परकर
    नश्ट कर देते हैं अपना जीवन

    नहीं पहचान पाता हैं मनुश्य़
    अपने ही जीवन का लक्श्य़
    सच को झूथ ओर झूथ को सच समझना
    उसके लिए बन जाते हैं सब कुछ समान

    लेकिन सच्चाई एक ही है
    जन्म का अन्त है म्रित्यू
    ऒर म्रित्य़ू का अन्त है जन्म

  41. ashvina goundowry says:

    माँ…
    ज़िंदगी कि तप्ति धुप में में एक ठण्ड़ा साया पाया है मैंने
    जब खोली आँख तो अपनी माँ को मुस्कुरता हुआ पाया है मेंने
    जब भि माँ का नाम लिया
    उस का बेशुमार प्यार पाया है मैंने
    जब कोइ दर्द मेह्सूस हुआ, जब कोई मुश्किल आयी
    अपनों में अपनी माँ को पाया है मैंने
    जागती रही रात भर वह मेरे लिये
    जाने कितनी रातें जगाया है मैंने उसे
    ज़िंदगी के हर मोड़ पर, जब हुई गुमराह में
    उसी कि झाव में ,पकड़ ली सिधी राह मैंने
    जिसकी दुआ से हर मुश्किल लूत जाये
    ऐसा फरिश्ता पाया है मैंने
    मेरी ज़िंदगी मेरी माँ है
    इसी के लिये तो
    इस ज़िंदगी कि शमा जला रखी है मैंने…

  42. Mamta Gopalsing says:

    माफ कीजिएगा गुरुजी जल्दी में गलत कविता पोस्त कर दिया मेरी कविता ये है:

    होनी के बहाने

    आने की,जाने की,
    मिलने की,बिछड़ने की,
    भीड़ लगी रहती है यहाँ,
    सपनों की,अरमानों की,
    या फीर बहानों की;
    हर वहाँ, रहते हैं मोग जहाँ!

    रूठने का, मनाने का,
    रूलाने का,हँसाने का,
    पड़ा रहता है मेला यहाँ,
    परायों का अपनों का,
    या फीर बहनों का;
    ह्रर वहाँ, रह्ते हैं लोग जहाँ!!

    भरण – पोषण की,इच्छा – पूर्ति की,
    संतुष्ट होने की,तृप्त होने की,
    व्याकुलता ने डाल रखा है देरा यहाँ,
    कभी इस पार से, तो कभी उस छोर से,
    या फीर अनजान- अनगीनत बहाँनों से,
    ह्रर वहाँ, रह्ते हैं लोग जहाँ !!!

  43. Sanjana Hurgobin says:

    Sanjana Hurgobin:
    अपने मृत्यु शैय्या पर लेटे-लेटे, अंतिम साँसों के बीच झुझते हुए, राजन का मन पूर्व स्मृति में डूब गया। वह क्षण अभी भी उसके मन मस्तिष्क में ताज़ा थी जिस समय उसने बेटी के साथ-साथ पत्नी को भी घर से धक्के मार-मारकर निकाला था। भला कोई इतना निर्दयी भी हो सकता है? गलत फेमली को सीधे तरीके से भी मिटाया जा सकता है, परंतु हांथ उठाना व इतनी बेरहमी से मारना, कहाँ की समझदारी थी !
    इस घटना को दस साल बीत गए। एक समय ऐसा था, राजन का हस्ता-खिलता परिवार हुआ करता था। बीवी, दो बेटियाँ तथा एक पुत्र के संगम मैं वह सुरम्य जीवन व्यतीत कर रहा था। कौन कहे, इस सुखी गृहसत पर किसकी बुरी नज़र पर गयी! बड़ी बेटी जयश्री के मन में कुमार नाम के किसान के प्रति प्रेम का बीज अंकुरित हुआ। किसी भी तरह उसने हिम्मत जुटाकर परिवार के समक्ष यह बात रख दी। परंतु जैसा सोचते हैं वैसा हों, ज़रूरी तो नहीं। किस्मत के लेख को भला बदला जा सकता हैं क्या?
    राजन को यह बात बिकुल भी रास न आई। वे जयश्री के इतने विरुद्ध हो गए कि बाप-बेटी के रिश्ते में इस प्रकार दराड़ पड़ी कि दोनों एक दूसरे के प्रति अंजान व्यक्तियों कि तरह रहने लगे। दोनों कि भावनाएँ, दृष्टिकोण एवं जीवनपद्धति एक दूसरे से पूर्णतः भिन्न था। ऐसा रोज़ बीत जाता, जैसे पिताजी कम से घर लौटते, जयश्री अपने आप को कमड़े में बंद कर लेती। फिर एक दिन उसने जाकर कुमार से कानूनी तौड़ से शादी कर ली। परंतु इसके पश्चात भी वह अपने मायके लौट आयी।
    सबको अंधेरे में रखकर वह कुमार से दूर, पिता के घर में रेह रही थी। यह बात तो है कि सच्चाई को ज़्यादा दिनों तक चौपाया नहीं जा सकता। जब लोग इसके बारे में गली-गली बात करने लगे तब राजन को इस बात कि भनक पड़ी। वे बड़े शांत होकर घर गए। जयश्री को कई दिनों के उपरांत आवाज़ दी:
    “जयश्री!” “जयश्री”…..
    – आई
    – सुनने मैं आया हैं कि तुम्हारा कुमार के साथ रिश्ता और भी मजबूत होता जा रहा है। अब तुम्ही मुझे बताओ कि इस बात मैं कितनी सच्चाई है।
    परंतु जिस क्षण जयश्री ने सब कुछ कबूल किया राजन ने उसे ज़ोर का थप्पर मारा कि वह चौखत पर जा गिरि। तभी माँ बीच मैं बोली:
    “ बड़ी बेटी पर हांथ नहीं उठाते”
    उस समय हिंसा के अलावा राजन को कुछ भी नहीं सुझा। पत्नी को भी एकाट–लाट लगा दिये और दोनों को धक्के मार-मारकर घर से निकाल दिया। दोनों बच्चे लाचारी से वहीं खड़े रह गए। जीवन भर के लिए जिस व्यक्ति के लिए अपना सर्वस्व त्यागकर वह बियाहकर आयी थी, आज उसी व्यक्ति ने क्रोधित होकर जीवन साथी को अपने से अलग कर दिया।
    आज दस साल पूर्व, बीटी बातों को याद करके उसके आँखों मैं आँसू भर आए। आखिर किसकी गलती थी? राजन को एहसास हुआ कि जयश्री के नादानी के कारण उसने अपने दोनों बच्चों को माँ की संगति से वंचित किया था। उसके शब्द मानो पत्थर कि लकीर थी। किसी भी तरह दूसरी बेटी ने अपने छोटे उम्र में ही घर के जिम्मेदारियों को अपने कंधे ले लिया था और कभी उफ़्फ़ तक नहीं की।
    क्षण भर के लिए उस गहरी सोच से उसकी आँखें खुली और देखा कि दूसरी बेटी बगल में बैठे रो रही थी। पिताजी को इतना कमजोर होते देख वह कुछ भी नहीं बोल पायी। यह दृश्य राजन के मन को छु गया। उसे इस बात कि चिंता हुई कि उसके बाद उसके बच्चों का क्या होगा। उस हादसे के बाद पत्नी ने एक बार भी मुरकर अपने घर-परिवार कि ओर नहीं देखा। राजन अपनी बेटी कि ओर देखकर बोले:
    “तुम लोगों के साथ अन्याय तो हुआ, और मुझे इस गलती को सुधारने का मौका भी नहीं मिला।”
    इन्ही शब्दों के साथ राजन ने अपने प्राण त्याग दिये और दोनों बच्चे एक बार फिर लाचार होकर वहीं आँसू कि नदियां बहाने लगे।

  44. Chandinee Jokhoo says:

    “वर्षा ऋतु”

    बरखा सुनाती अनगिनत प्यारी प्यारी कहानी,
    जहाँ रिमझिम फुहारों संग बरसता है पानी,
    पर एक काली बरखा की दास्तां सुनो मेरी जुबानी.
    याद है वह दिन जब बरसा था पानी बनकर कहर,
    २६ मार्च के दिन तुफान बन चुकी थी हर लहर.
    समुंदर था उफान पर, तो बरखा थी तबाही की कमान पर,
    कड़कड़ाहट बिजलियों की आ गिरी थी जमीन पर,
    ढह गयीं कई इमारतें,मलबे बन चुके थे कई घर.
    काली घनेरी घटाओं से छा चुका था घनघोर अंधेरा,
    मूसलाधार वर्षा से भर चुका था हर चौक, हर गलियारा.
    नांव बन चुकी थीं सड़कों पर गाडियाँ,
    जान बचाने को फंस चुके थे सब जहाँ के तहाँ.
    मीठी नदी ने भी था किया तीखा वार ऐसा,
    ली डूबी जानें कईं, बन चुकी थी काल सभीका.
    डूब गईं समानों संग दुकानें और झुग्गियाँ कईं,
    बह रही थीं बनकर लाशें जिंदगियाँ कईं.
    तबेलों में बंधे हुए थे सैकडों अमूक जानवर,
    छूटने को जीतोड मेहनत कर मर गये घुटघुटकर.
    तैर रहे थे सडकों पर मरे इंसान,जानवर और सामान,
    वर्षा की इस तबाही को देख हुई थी सारी दुनिया भी हैरान.
    ढुंढ रहा था हर कोई अपनों को, आस लगाए
    माँग रहे थे उनकी सलामती के लिए सभी दुआएँ,
    देखा है इन आँखों ने खुली पलकों से तबाही का यह मंजर,
    हर वर्ष, वर्षा के आने पर लगने लगता है यही डर,
    कहीं फिर न आए कोई दूसरा २६ मार्च लेकर तबाही,
    पानी से ही तो है जीवन, कहीं फिर न बन जाए वह मौत की कहानी I

    कृपया पहली कविता की उपेक्षा गुरुजीI .यह एक गलती थीI
    धन्यवाद

  45. Devika Mungur says:

    देश मे यत्र- तत्र मच्च गई त्रिह – त्रिह!
    देखो सफीति ने फिर दे दस्तक दी!
    कितना किलष्ट है गरीबी को गले से लगाना.
    हाय! निर्धन व्यक्ति सोचे कि कितना है दुलभ
    है प्राप्त करना अन्न क एक एक दाना!
    पेट की आग मे जुलसता हुआ,
    भुख- प्यास से लड़ता हुआ ,
    अपनी बेबसी पर बहाए गरीब आठ आठ आँसू
    क्या येही है जीवन का निष्ठूर पहेमू?
    कौन जाने!
    बड़े तो बड़े किंतु नवजात शिशु भी बुँध बुँध दुध को तरसे
    परंतु गिरब के यहाँ तो मात्र ही आँसु बरसे .

  46. Anishta Mootten says:

    आंदोलन।
    कल फिर होगी सुबह,
    फिर एक नए दिन।
    पीड़ा का स्वर नए सुनाई देगी,
    भूख गालों पर गडढे बनेगी
    प्यास सिमट आएगी सूखे अधेरों पर
    दर्द ऊभरकर अलकों पर आएगी।

    हाय रे!समाज के ठेकेदारो,
    एकता की बात मत करो,
    दारिद्रय अभिशाप बनकर
    कितनों को इसकर
    मृत्यु-शैया पर सुला दिया।
    कहाँ थे तुम?
    भौतिक सुख में तुम गर्वित ही रहे!
    कभी देखो,
    आस-पास की स्थिति,

    मर रहे हैं हम भूखे-प्यासे।
    पहचानो!देर न हो जाए
    अंगारों पर चलो मत
    ज्यालामुखी फूट जाएगा
    विनाश कर जाएगा
    रहेगा मात्र कंकाल;
    होगा तृतीय विश्व-युद्ध!

  47. Anishta Mootten says:

    आंदोलन।
    कल फिर होगी सुबह,
    फिर एक नए दिन।
    पीड़ा का स्वर फिर सुनाई देगी,
    भूख गालों पर गडढे बनेगी
    प्यास सिमट आएगी सूखे अधेरों पर
    दर्द ऊभरकर अलकों पर आएगी।

    हाय रे!समाज के ठेकेदारो,
    एकता की बात मत करो,
    दारिद्रय अभिशाप बनकर
    कितनों को इसकर
    मृत्यु-शैया पर सुला दिया।
    कहाँ थे तुम?
    भौतिक सुख में तुम गर्वित ही रहे!
    कभी देखो,
    आस-पास की स्थिति,
    मर रहे हैं हम भूखे-प्यासे।
    पहचानो!देर न हो जाए
    अंगारों पर चलो मत
    ज्यालामुखी फूट जाएगा
    विनाश कर जाएगा
    रहेगा मात्र कंकाल;
    होगा तृतीय विश्व-युद्ध!
    [There was one error in the first poem Guruji,sorry]

  48. Khushboo Bisram says:

    समाज हमारा

    मिले थे हम कभी अपने आप से,
    आईना टूटा जब भी देखा चेहरे औरों के !

    समेत रहे थे हम जीगर के पास,
    दूसरों का दुःख, थामे एक आस !

    हिंसक व निर्दयी बन गयी हैं समाज,
    हम क्या बन गए, आओ देखें आज !

    भ्रष्टाचार, अत्याचार, बुभुक्षा, ताप से मानव हैं कांखता,
    फिर भी बढ़ती जा रही हैं दुष्टता !

    खो गए हैं हुक इस मायावी संसार में ,
    न कोई संचार न पुकार खोखलापन में !

    भीगी – भीगी हैं हरेक की चाहत,
    कहाँ से ख़रीदे हम खुद के लिए राहत !

    प्रदुषण हैं बढ़ती जा रही प्रतिदिन,
    हैं करोरों जीव जंतु मर रहे निसदिन !

    आओ विचारों आज मिलकर सभी,
    एक नयी एवं सुरक्षित समाज का सृजन करें अभी !

    कुशबू बिसराम

  49. Parvatee Doolarah says:

    मर्द का नारी पर तानाशाही

    नारी ! क्या बन गयी हैं आज नारी ?
    जहाँ जाऊं वहां हैं मर्द का नारी पर तानाशाही !

    सदियों से अत्याचार सहती आ रही,
    मर- पीट खून खराबा अब पीछे हैं रह गयी !

    कहते हैं खत्म हो गया नारी शोषण,
    लम्बी -चवरी सी देते हैं, मंत्रीगण भाषण !

    असमानता, नीचापान, सब कुछ हैं सहती,
    पर अब नहीं सह सकती आज की नारी !

    गया वो ज़माना जाब नारी थी सहमी,
    आब न तानाशाही सहती हैं आज की नारी !

    स्वतंत्रता, आज़ादी हैं ज़रूरत आब बन चुकी
    चाहिये उसको मुक्ति तथा मन की शान्ति !

    बढ़ो आगे तुम नारी, बढ़ो ,
    कर्तव्य, दयित्यावों का पालन तुम करती जाओ !

    नहीं हैं मांगती धन करोरों की,
    बस चाहिये उसे विश्वास ज़रा सी !

    पार्वती दुलारा

  50. Mr. Run Ravidev says:

    प्रदूषण
    दिल का यही खयाल है,
    होटो पर बस यही सवाल है;
    पानी का स्तर क्यों बढ रहा है?
    पड़ोसी का बिस्तर क्यों हिल रही है?
    कैसी ये माया जाल है?
    कहते है प्रदूषण का कमाल है।

    पहले हरियाली ही हरियाली थी।
    अब कुछ भी नहीं।
    बड़े बड़े इमारतें खड़े हो गए,
    लेकिन जंगल का वो शांत वातावरण खो गया।
    कारखानों से निकली हुई धुआँ,
    बनता जा रहा हैं मौत को कुआँ।
    हवा में अब वह बात नहीं,
    हर पल अब दिन है रात नहीं।

    प्रदूषण से पीड़ीत है अब सारा जहाँ,
    इस दूनिया को छोरकर जाऊँ कहाँ।
    है चारों ओर धुआँ ही धुआँ,
    बदल गया है सारा समा।

    दिल का यही खयाल है,
    होटो पर बस यही सवाल है;
    कैसी ये माया जाल है?
    कहते है प्रदूषण का कमाल है।

  51. Jyoti Ramessur says:

    महंगाई का सन्देश

    मैं महगाई
    महंगे देशभक्तत लोगों के आमन्त्र्ण पर,
    मोरिशस आई ।
    तेज़ गति लाने प्रगति में,
    मोरिशस आई।
    मुझॆ गलत समझॊ न गरीबों,
    बहुत थिक हुं ।
    बहुमत देकर तुमने जिनको बहुत उथाया ,
    मैं तो उनकी ही प्रतिक हुं ।
    भौतिकवादी योग में युग सिखती हुं मैं,
    भुखॆ पेट न सोये कोई,
    कुण्डिलिनी जगाती हुं मैं ।

    मोरिशस का आदर्श त्त्याग है,
    अनासक्तित है अपरिग्रह है,
    मुझको पा कर लोग,
    वस्तु त्याग रहे हैं ।
    मैं लोगों को तड्क-भडक से खींच,
    सादगी सिखलाती हुं ।
    टैरिलीन के सोव्कीनो को,
    ल्ट्था ला कर पहनती हुं ।
    माया जीवन का बन्धन है ।
    रुपय़ा-पैसा मैल हाथ का,
    मैं वेतंभोगी लोगो के ।

    दो दिन में बन्धन हर लेती
    शीध्न छॊड्कर मैल हाथ का
    शीशॆ-सा निमल कर देती,
    निति ग्रंथ लिखने वालों ने,
    कम खाना या कम खाना
    अच्छा बतलाया
    मैंने उनका कथन निभाया,
    जितनी चिज़ महंगी होगी ।
    उतना ही जन कम खाऎंगे
    जिस दिन रोटी नहीं मिलेगी,
    उस दिन खुद ही कम खाएंगे ।

    शुक्ल पक्श के चांद सरीखी बद्ती हुं मैं,
    खुब चांदनी फैलाऊंगी,
    अभी दुइज तक ही आयी हुं,
    पुराण्मासी तक जाऊंगी ।
    करो कल्पना तब मोरिशस जन,
    कितने सुंदर दिखा करेगें
    गेहुं ,चावल,चीनी,
    जब पुडिया में बिका करेंगें ।
    बिमारों को दूध,दही,घी के ।
    इंज्क्कशन लगा करेंगें,
    कैसा मधुर जागरण होगा ।
    लोग भूख सॆ जागा करेंगें । ज्योति रामेसर

  52. Pingback: सन्तान, यश, लक्ष्मी की कृपा, वैभव, चन्द्र दोष से निवृति आदि का एक उपाय – प्रदोष व्रत | | AstrologyAstrology

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